मंजरियों का मुकुट शीश धर निकले हैं ऋतुराज
दुल्हन प्रकृति संवर गई है कर सोलह-श्रृंगार
अमलताश के पहने झुमके ,कुन्दकली के हार
लज्जा से पीली भई धरा वसंत निहार
बोराई सी चल रही ,फागुनी मंद बयार
अमराई में कूक रही है कोयल की शहनाई
ओर नहीं है छोर नहीं है ,सरसों है पियराई
लाल पताका फहराते ,पुलकित हुए पलाश
बिखर गये है दिग दिगंत में ,रंग-सुगंध-अनुराग*******
वाह अद्भुत ....सुंदर बनरा ब्याहन आया ......धारा मन रूप हर्षाया .....बहुत ही सुंदर ......बसंत पंचमी की शुभकामनायें ,
ReplyDeleteवाह...सुन्दर शब्दों में ऋतुराज का स्वागत !!!
ReplyDeleterituraj vasant ka bahut sundar swagat vah !
ReplyDeleteNew post जापानी शैली तांका में माँ सरस्वती की स्तुति !
New Post: Arrival of Spring !
ऋतुराज का सुंदर चित्रण, बधाई शुभकामनाएं
ReplyDeleteअहा! बसंत ऋतु मन में उमंग भर ही देता है... मनमोहक रचना. वसंत पंचमी की बधाई.
ReplyDeleteसुन्दर वसंत !
ReplyDeleteआपको भी बहुत शुभकामनायें !
बहुत सुंदर....!! बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं ...
ReplyDeleteवसंत -दूल्हे का बड़ा प्यारा रूपक बाँधा है -बधाई !
ReplyDeleteअदिति जी, वसंत उत्सव की आपको भी बहुत बहुत बधाई..सुंदर रचना..
ReplyDeleteबसंत ऋतु की बहुत सुंदर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteबसंत पंचमी कि हार्दिक शुभकामनाएँ....
RECENT POST-: बसंत ने अभी रूप संवारा नहीं है
बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं ...
ReplyDeleteवसंत उत्सव की आपको भी बहुत -बहुत बधाई । सुंदर रचना । मेरी कविता "समय की भी उम्र होती है" पर सुदर प्रतिक्रिया प्रस्तुत करने के लिए विशेष आभार।.
ReplyDeleteबिखर गये है दिग दिगंत में, रंग-सुगंध-अनुराग....बहुत खूब, वासन्ती रंग में रंगी हुई खूबसूरत रचना... जड़ता में ऊष्मा का संचार है वसंत, अनमनेपन में राग का अंकुरण है वसंत...वसंतोत्सव की हार्दिक शुभकामनाएं..प्रतिक्रिया के लिए आभार...ब्लॉग पर आती रहें...
ReplyDeletewah
ReplyDeleteआपको भी शुकामनाएं..
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ReplyDeleteसौंदर्य से भी सुन्दर है यह रचना भाषिक सौंदर्य का अपना आकर्षण होता है शब्द बांध का का भी छंद और भाव का भी।
Beautiful creation !
ReplyDeleteलज्जा से पीली भाई धरा वसंत निहार
ReplyDeleteबोराई सी चल रही ,फागुनी मंद बयार
अमराई में कूक रही है कोयल की शहनाई
ओर नहीं है छोर नहीं है ,सरसों है पियराई bahut khoobsoorat rachana basanti rang me rangi hui .....aabhar poonam ji
आप सभी को आभार ...धन्यवाद ....ब्लॉग पर आकर उत्साहवर्धन केलिए
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ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति ,लयात्मक अभिनव शब्द चयन
लज्जा से पीली भाई को लज्जा से पीली भई कर लें ,ऋतु कर लें ऋतू को
नेहामय आभार आपकी निरंतर सार्थक टिप्पणियों
बसंत राज की देखिये निकल रही बरात
मंजरियों का मुकुट शीश धर निकले हैं ऋतुराज
दुल्हन प्रकृति संवर गई है कर सोलह-श्रृंगार
अमलताश के पहने झुमके ,कुन्दकली के हार
लज्जा से पीली भाई(भई ) धरा वसंत निहार
बोराई सी चल रही ,फागुनी मंद बयार
अमराई में कूक रही है कोयल की शहनाई
ओर नहीं है छोर नहीं है ,सरसों है पियराई
लाल पताका फहराते ,पुलकित हुए पलाश
बिखर गये है दिग दिगंत में ,रंग-सुगंध-अनुराग*******
ऋतू बसंत की शुभ कामनाएं अनंत
सभी मित्रों को
अदिति पूनम *******
उम्दा अभिव्यक्ति ..मरे ब्लाग "सजग " में आपका स्वागत है
ReplyDeleteवसंत का सुन्दर चित्रण. आपको भी वसंतागमन की शुभकामनायें.
ReplyDeleteवाह ...
ReplyDeleteमंगलकामनाएं !!
शुभकामनायें सुन्दर चित्रण. !
ReplyDeleteबहुत ख़ूबसूरत शब्द चित्र...शुभकामनायें!
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteखूबसूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeleteरचना लाजबाब है बधाई
basant ki anupam abhivykti!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर वसंत का वर्णन किया है .. सरस कविता ..
ReplyDeleteमंजरियों का मुकुट शीश धर निकले हैं ऋतुराज
दुल्हन प्रकृति संवर गई है कर सोलह-श्रृंगार
अमलताश के पहने झुमके ,कुन्दकली के हार
लज्जा से पीली भई धरा वसंत निहार
मन को दुलराती भाषा का अप्रतिम सौंदर्य लिए है ये लयताल का पैटर्न लिए छांदिक रचना।
ReplyDeleteलाल पताका फहराते ,पुलकित हुए पलाश
ReplyDeleteबहुत सुन्दर...वसन्त का मनोहर चित्रण .....
शुक्रिया आपकी प्रेरक टिप्पणियों का मीठा लिखतीं हैं आप साहित्यिक तेवर लिए नए प्रतीक रूपकत्व लिए।
ReplyDeleteबसंत राज की देखिये निकल रही बरात
ReplyDeleteमंजरियों का मुकुट शीश धर निकले हैं ऋतुराज
दुल्हन प्रकृति संवर गई है कर सोलह-श्रृंगार
अमलताश के पहने झुमके ,कुन्दकली के हार
अनुपम प्रकृति चित्रण मदन उत्सव वेलेंटाइन फीका कर दिया शब्द बयार ने आपकी माननीया।जग जग जियो ऐसे ही लिखो।
बहुत बढ़िया । मेरे नए पोस्ट DREAMS ALSO HAVE LIFE.पर आपका स्वागत है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteबहुत खूब
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