Friday, March 8, 2013

स्त्री

करूणा और प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों को ,
जीवन के उतार-चढाव के ताने-बाने में ,
        चतुर बुनकर सी 
               धागा-दर-धागा 
                    रिश्तों को बुनती स्त्री**************

                             
                                          चुन-चुन कंटकों से ,
                                       नेह के बिखरे तिनके ,
                                       समेट  नीड  बनाती 
                                बिछोना वात्सल्य का बिछाती स्त्री************

जीवन सरिता में बहती 
नोका की ,पतवार सी ,
प्रवाह-पथ की लोह-चट्टानों को 
आत्मविश्वास और दृढ़ता  से  मोम  करती स्त्री************** .
                                        
                                               प्रकृति की प्रतिश्रुति सी
 ,                                             निस्तब्ध पतझड़ मे
                                              बसंत की आहट सुन        
                                                 ठूंठों से झांकती          
                                                 हरियाली सी स्त्री...............
                                                           

                                                                            महिला-दिवस की शुभ-कामनाओं सहित 
                                     





                                           ,
                                   
         
       
  
.




58 comments:

  1. चम्पक बन में बैठ सखी संग .....
    कुछ मन खोलती .....
    खिलखिलाती ....
    एक तरंग सी ....
    स्त्री ....!!

    बहुत ही सुन्दर प्रभावशाली प्रस्तुति .....कुछ यादें महका गयी ....!!
    शानदार रचना ....
    .......शुभकामनायें .......!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद अनुपमा.......

      Delete
  2. प्रकृति की प्रतिश्रुति सी
    निस्तब्ध पतझड़ मे
    बसंत की आहट सुन
    ठूंठों से झांकती
    हरियाली सी स्त्री..........

    अद्धभुत अभिव्यक्ति !!
    महिला-दिवस कीशुभकामनायें !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद विभा जी.............

      Delete
  3. प्रकृति की प्रतिश्रुति सी
    निस्तब्ध पतझड़ मे
    बसंत की आहट सुन
    ठूंठों से झांकती
    हरियाली सी स्त्री...
    बेह्तरीन अभिव्यक्ति.शुभकामनायें.
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena69.blogspot.in/

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद मदन जी..........

      Delete
  4. सुन्दर प्रस्तुति आदरेया--
    शुभकामनायें-
    सादर

    ReplyDelete
  5. चम्पक बन में बैठ सखी संग .....
    कुछ मन खोलती .....
    खिलखिलाती ....
    एक तरंग सी ....
    स्त्री ....!!

    बहुत उम्दा प्रभावी प्रस्तुति,,,

    Recent post: रंग गुलाल है यारो,

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद,महोदय..........

      Delete
  6. प्रकृति की प्रतिश्रुति सी
    , निस्तब्ध पतझड़ मे
    बसंत की आहट सुन
    ठूंठों से झांकती
    हरियाली सी स्त्री...........

    अनुपम भाव लिये उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद...आभार...
      आपका..........

      Delete
  7. बिछोना वात्सल्य का बिछाती...उम्दा

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार राहुल जी ..............

      Delete
  8. मार्मिक और सटीक चित्रण - अति सुंदर

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद राकेश जी ...........

      Delete
  9. स्त्री के बिना कुछ नहीं है, वो तो सृष्टिकर्ता है।
    बेहद सुन्दर रचना है आपकी .
    सादर शुभकामनाएं

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद मधुरेश जी ...........

      Delete
  10. धन्यवाद.........प्रसन्न जी .....

    ReplyDelete
  11. सुंदर अभिव्यक्ति....

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद,मार्क जी..........
      आभार.........

      Delete

  12. बेहतरीन अभिव्यक्ति.
    महिला-दिवस की शुभ-कामना

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद,रमाकांत जी.....
      आभार.............

      Delete

  13. प्रकृति की प्रतिश्रुति सी
    , निस्तब्ध पतझड़ मे
    बसंत की आहट सुन
    ठूंठों से झांकती
    हरियाली सी स्त्री...............

    kitna behtareen shabd diya aapne...
    superb.. fantastic..
    gajab ka likhte ho aap..:)
    shubhkamnayen..

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ,मुकेश जी ......
      आभार ..........

      Delete
  14. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति मंगलवारीय चर्चा मंच पर ।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद....महोदय .......आभार.

      Delete
  15. जेठ में ठंढी फुहार सी
    माँ के दुलार सी
    बहन के प्यार सी
    गोरी के श्रृंगार सी.
    सरिता की चंचल धार सी
    समंदर के आधार सी
    विभिन्न रूप दिखाती स्त्री.
    आपको स्त्री होने की और महिला दिवस की ढेर सारी बधाइयाँ.
    सादर
    नीरज 'नीर'

    KAVYA SUDHA (काव्य सुधा): KAVYA SUDHA (काव्य सुधा)

    ReplyDelete
  16. बहुत उम्दा प्रस्तुति आभार

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

    ReplyDelete
  17. करूणा और प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों को ,
    जीवन के उतार-चढाव के ताने-बाने में ,
    चतुर बुनकर सी
    धागा-दर-धागा
    रिश्तों को बुनती स्त्री**************
    स्त्री ही मकान को घर बनाती है ,आप भी मेरे ब्लोग्स का अनुशरण करें ,ख़ुशी होगी
    latest postअहम् का गुलाम (भाग तीन )
    latest postमहाशिव रात्रि

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ...महोदय.....आभार...

      Delete
  18. bahut sundar prastuti :-) badhai

    मेरी नई कविता Os ki boond: झांकते लोग...

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद ...पंखुरी जी ...आभार...

      Delete
  19. बेहतरीन अभिव्यक्ति.

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद महोदय...........
      आभार ........

      Delete
  20. बहुत सुंदर भावसुधा बरसाती पंक्तियां...

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
    2. धन्यवाद....अनिता जी...
      साभार.....

      Delete
  21. सुचना ****सूचना **** सुचना

    सभी लेखक-लेखिकाओं के लिए एक महत्वपूर्ण सुचना सदबुद्धी यज्ञ


    (माफ़ी चाहता हूँ समय की किल्लत की वजह से आपकी पोस्ट पर कोई टिप्पणी नहीं दे सकता।)

    ReplyDelete
  22. चुन-चुन कंटकों से ,
    नेह के बिखरे तिनके ,
    समेट नीड बनाती
    बिछोना वात्सल्य का बिछाती स्त्री***

    स्त्री के कोमल मन की अनुपम भावनाओं को सुन्दर शब्द दिए हैं आपने ...
    बधाई ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद दिगम्बर जी .....
      आभार...

      Delete
  23. Replies
    1. धन्यवाद....अज़ीज़ जी ...
      साभार....

      Delete
  24. वास्तव में नारी होने पर गर्व होता है ....

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद....सरस जी ....
      साभार...

      Delete
  25. बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति,आभार.

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद....राजेंद्र जी....
      साभार....

      Delete
  26. जीवन सरिता में बहती
    नोका की ,पतवार सी ,
    प्रवाह-पथ की लोह-चट्टानों को
    आत्मविश्वास और दृढ़ता से मोम करती स्त्री************** .
    bahut sundar rachana ke liye badhai !

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद...सुमन जी...
      साभार...

      Delete
  27. सुंदर लिखा , बधाई आप को

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद......अवन्ती जी..
      आभार...

      Delete
  28. करूणा और प्रेम के इन्द्रधनुषी रंगों को ,
    जीवन के उतार-चढाव के ताने-बाने में ,
    चतुर बुनकर सी बुनती... स्त्री!
    - बहुत सुन्दर !

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद....प्रतिभा जी...
      आभार

      Delete
  29. धन्यवाद ,रोहितास जी ....आभार...

    ReplyDelete
  30. चुन-चुन कंटकों से ,
    नेह के बिखरे तिनके ,
    समेट नीड बनाती
    बिछोना वात्सल्य का बिछाती

    bahut hi prabhavshali rachana lagi .....sadar abhar Poonam ji .

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद त्रिपाठी जी ....
      साभार...

      Delete
  31. dhanywaad nisha ji ......
    thanks ,to visit my blog...

    ReplyDelete
  32. waah...wonderful composition... please visit my blog and join it
    regards
    http://boseaparna.blogspot.in/

    ReplyDelete