संस्मरण कविता
चम्पक-वन में बैठ सखी संग ,
कहती सुनती कुछ मन की जीवन की
कुछ अपनों की कुछ सपनों की
कुछ टूटे सपनों की कुछ छूटे अपनों की
मन के पन्ने खोल रही हैं
एक-दूजे को तोल रही हैं
कहती सुनती ,कुछ मन की जीवन की
कुछ सासू की -कुछ ननदी की
कहती सुनती ,कुछ मन की जीवन की
कुछ सासू की -कुछ ननदी की
कुछ साजन की-कुछ लालन की
भर आँचल में झर- झर झरते
स्मृतियों के चम्पक-सुमन
स्मृतियों के चम्पक-सुमन
कहती -सुनती कुछ मन की जीवन की
कुछ द्वंदों की -अवसादों की
कहती सुनती कुछ मन की जीवन की
कुछ तीरों की तलवारों की
कब लगी ह्रदय को ठेस
पीड़ा अकथ ,भूल मुस्काने की कब लगी ह्रदय को ठेस
कहती सुनती कुछ मन की जीवन की
बाहें थामे एक-दूजे की
आपस में ये पूछ रही हैं
किसकी कैसे बीत रही है
आपस में ये पूछ रही हैं
किसकी कैसे बीत रही है
हार रही या जीत रही हैं
हारी फिर भी जीत रही हैं
या, जीत कर भी हार रही हैं
जीवन की तो रीत यही है
सखियों की तो प्रीत यही है
हारी फिर भी जीत रही हैं
या, जीत कर भी हार रही हैं
जीवन की तो रीत यही है
सखियों की तो प्रीत यही है
धन्यवाद..........अदितिपूनम