Monday, July 15, 2013

धरती

कितने सुख देती है धरती    
मानवता को विकसित करने    
कितने दुःख सहती है धरती 
पिघलने से हिमगिरी के,
सागर सा भर आता है मन .
अनावृष्टि -सूखा -अकाल को
देख मन भूमि का होता है मरुथल
अति -वृष्टि और चक्र वात  के व्यूह -
में धरती रोंती है ,कितने सुख देती है
कितने दुःख सहती है धरती
जब -जब कटते है जंगल
हृदय में होती है हलचल
बढ़ जाती हृदय की धड़कन
जब होता भूमि में कम्पन
पिघलने से हिमगिरी के
सागर सा भर आता है मन
अनावृष्टि-सूखा-अकाल को ,
देख मन,भूमि का होता है मरुथल
अति-वृष्टि और चक्रवात के ,
व्यूह में धरती  रोती  है .
कितने सुख देती है धरती ,
 कितने दुःख सहती है ..............अदितिपूनम.