कितने सुख देती है धरती
मानवता को विकसित करने
कितने दुःख सहती है धरती
पिघलने से हिमगिरी के,
सागर सा भर आता है मन .
अनावृष्टि -सूखा -अकाल कोसागर सा भर आता है मन .
देख मन भूमि का होता है मरुथल
अति -वृष्टि और चक्र वात के व्यूह -
में धरती रोंती है ,कितने सुख देती है
कितने दुःख सहती है धरती
जब -जब कटते है जंगलहृदय में होती है हलचल
बढ़ जाती हृदय की धड़कन
जब होता भूमि में कम्पन
पिघलने से हिमगिरी के
सागर सा भर आता है मन
अनावृष्टि-सूखा-अकाल को ,
देख मन,भूमि का होता है मरुथल
अति-वृष्टि और चक्रवात के ,
व्यूह में धरती रोती है .
कितने सुख देती है धरती ,
कितने दुःख सहती है ..............अदितिपूनम.
Very Nice
ReplyDeleteधन्यवाद ,मनोज जी
Deleteकितना सही वर्णन मानवता के लिए धरती के कर्तव्यों का ...किन्तु मानव अपने ही स्वार्थ की चिंता मेंलीन .....
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ...
शुभकामनायें ....
धन्यवाद अनुपमा
Deleteधरती की दुखद व्यथा...शब्दों के सहारे..लाजवाब |
ReplyDeleteधन्यवाद मंटू जी
Deleteबहुत सुन्दर मनोहारी रचना
ReplyDeleteधरती माँ की पीड़ा को स्वर देती सार्थक अभिव्यक्ति के लिए साधुवाद ,शुभकामनाये
ReplyDeleteकितने सुख देती है धरती ,
ReplyDeleteकितने दुःख सहती है ----
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धरती और जीवन के सत्य को दर्शाती सुंदर रचना
सादर