हे, विधाता ज्ञानदे मुझको
कौन धागे से बीनू चदरिया हरी भरी कुसुमित और जग मुस्कुराये
कौन राग छेड़ूँ कि जग हरित माधुर्य से भर जाये
कौन बीज बोउं भूमि पर विस्तार हरा अनंत हो जाये
कौन गीत गाऊँ कि झर झर निर्झर बहे
हे,विधाता! ज्ञान दे मुझको कि
इस धरा का वैभव हरा अमिट सदा अनंत रहे !