कितने सुख देती है धरती
मानवता को विकसित करने
कितने दुःख सहती है धरती
पिघलने से हिमगिरी के,
सागर सा भर आता है मन .
अनावृष्टि -सूखा -अकाल कोसागर सा भर आता है मन .
देख मन भूमि का होता है मरुथल
अति -वृष्टि और चक्र वात के व्यूह -
में धरती रोंती है ,कितने सुख देती है
कितने दुःख सहती है धरती
जब -जब कटते है जंगलहृदय में होती है हलचल
बढ़ जाती हृदय की धड़कन
जब होता भूमि में कम्पन
पिघलने से हिमगिरी के
सागर सा भर आता है मन
अनावृष्टि-सूखा-अकाल को ,
देख मन,भूमि का होता है मरुथल
अति-वृष्टि और चक्रवात के ,
व्यूह में धरती रोती है .
कितने सुख देती है धरती ,
कितने दुःख सहती है ..............अदितिपूनम.